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पूरी मानवता के महात्मा :: महात्मा गांधी



अमेरिका में जब लोग सामाजिक-राजनैतिक व्यवस्था के प्रति असहमति, प्रतिरोध या निराशा प्रकट करने के लिए उठ खड़े होते हैं तो वे न्यूयॉर्क के यूनियन स्क्वायर जाकर अपनी आवाज बुलंद करते हैं। यह स्थान विश्व भर में राजनैतिक मतान्तर की अभिव्यक्ति का केंद्र और लोकतांत्रिक भावना के प्रतीक के रूप में जाना जाता है। वहां पर जिन विश्व इतिहास की जिन तीन महान हस्तियों की मूर्तियां स्थापित हैं, उनमें जॉर्ज वाशिंगटन और अब्राहम लिंकन के अलावा तीसरे हैं महात्मा गांधी।
अमेरिका और विश्व के अलग-अलग क्षेत्रों से आए हुए, अलग-अलग राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक दृष्टिकोण वाले लोग वहां गांधी प्रतिमा की आश्वस्तकारी छत्रछाया में अपनी प्रतिरोधी आवाज उठाते हैं। ये लोग गांधीजी से प्रेरणा लेते हैं, अहिंसा, शांति और एकता के गांधीवादी सिद्धांतों में गहरी आस्था रखते हुए अपने संघर्ष को नैतिक मजबूती प्रदान करते हैं। क्योंकि गांधीजी के सिद्धांत और विचार सिर्फ हम भारतीयों के लिए ही नहीं हैं।
गांधीजी सच्चे अर्थों में एक विश्व मानव थे। एक ऐसा महान व्यक्ति जो 'वसुधैव कुटुम्बकम' की भावना में आत्मा से विश्वास रखता था। ऐसी शख्सियत जो पूरे विश्व को हिंसा, दमन, पराधीनता, अन्याय और असत्य से मुक्त देखना चाहती थी। न तो गांधी के विचार और न वे स्वयं किसी एक राष्ट्र की भौगोलिक सीमाओं के भीतर रखकर देखे जा सकते हैं। वे पूरे विश्व के महात्मा हैं। वे समूची मानवता के प्रतिनिधि हैं। गांधीजी के प्रति सम्मान और लगाव विश्व के कोने.कोने में दिखाई देता है। कभी डाक टिकटों के रूप में, कभी प्रमुख मार्गों के नामकरण के रूप में तो कभी उनकी प्रतिमाओं और चित्रों के रूप में। यह सम्मान किसी किस्म के वैश्विक राजनैतिक समीकरणों या कूटनीतिक सद्भावनाओं पर आधारित नहीं है बल्कि वास्तविक एवं स्वत: स्फूर्त है क्योंकि गांधीजी कभी किसी सरकारी पद पर नहीं रहे। गांधीजी के निधन के साठ साल बाद भी दुनिया उनसे प्रेरणा ले रही है, उनके नाम और सिद्धांतों के साथ जुड़ने में गर्व का अनुभव करती है।
ईसा और गांधी
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कुछ महीने पहले कहा था कि महात्मा गांधी जीवन भर उनके लिए प्रेरणा स्रोत बने रहे हैं। गांधी का संदेश उन्हें निरंतर इस बात की याद दिलाता रहता है कि जब सामान्य लोग असामान्य कार्य करने के लिए एकजुट होते हैं तो विश्व में युगांतरकारी बदलाव संभव हैं। ओबामा के कार्यालय में गांधीजी का चित्र लगा है जो उन्हें हमेशा सच के हक में खड़े होने के लिए प्रेरित करता रहता है, आम आदमी के प्रति अपने दायित्वों का स्मरण कराता रहता है। ओबामा अमेरिका में हुए नागरिक अधिकार आंदोलन के प्रणेता मार्टिन लूथर किंग के विचारों के प्रति भी गहरी आस्था रखते हैं और यह कोई संयोग नहीं है कि स्वयं किंग का सारा आंदोलन महात्मा गांधी के विचारों और अहिंसक तौर.तरीकों पर आधारित था। श्वेतों और अश्वेतों को समाज में समान दर्जा दिलवाने के लिए उनका अथक और सफल संघर्ष महात्मा गांधी के सिद्धांतों की वैश्विक स्तर पर हुई एक और महान विजय का प्रतीक है। मार्टिन लूथर किंग ने तो महात्मा गांधी को ईसा मसीह से जोड़ा था। उन्होंने कहा था कि ईसा मसीह ने हमें लक्ष्य दिखाए हैं लेकिन उन लक्ष्यों तक पहुंचने का मार्ग गांधीजी ने सुझाया है।
दक्षिण अफ्रीका में नेल्सन मंडेला के नेतृत्व में चले लंबे रंगभेद विरोधी आंदोलन की सफलता भी गांधीजी के सिद्धांतों की जीत है जिन्होंने वहां रंगभेद के विरुद्ध लड़ाई की शुरूआत की थी। मंडेला ने हमेशा गांधीजी को अपना प्रेरणा स्रोत माना है जिन्होंने बीस साल तक दक्षिण अफ्रीका में अश्वेतों के दमन के विरुद्ध संघर्ष किया और एक व्यापक आंदोलन की नींव तैयार की। डरबन से प्रीटोरिया जाते समय जिस पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन पर उन्हें ट्रेन से नीचे फेंक दिया गया था, आज उसी शहर के बीचोबीच गांधीजी की प्रतिमा स्थापित है। कुछ साल पहले प्रधानमंत्री डॉ॰ मनमोहन सिंह ने उसी डरबन.प्रीटोरिया रेलमार्ग पर पीटरमारिट्जबर्ग स्टेशन तक रेल यात्रा कर गांधीजी को श्रद्धांजलि दी थी।
संयुक्त राष्ट्र संघ भी महात्मा गांधी के जन्म दिवस दो अक्तूबर को 'अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस' घोषित कर उनके सिद्धांतों के प्रति समूचे विश्व की आस्था को अभिव्यक्त कर चुका है। प्रथम अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस के मौके पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने कहा था कि हिंसा, आतंक और असमानता से ग्रस्त आज के समाज को गांधीजी के सिद्धांतों की पहले से भी ज्यादा जरूरत है। वास्तव में संयुक्त राष्ट्र की स्थापना जिन उद्देश्यों को लेकर हुई थी (शांति, सहिष्णुता और मानवीय गरिमा की स्थापना) वे वही हैं जिनके लिए गांधीजी ने जीवन भर संघर्ष किया। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के पीछे की धारणा यह है कि युद्धों को समाप्त ही नहीं किया जा सकता बल्कि अनावश्यक भी बनाया जा सकता है। गांधीजी का शांतिपूर्ण प्रतिरोध, सत्याग्रह या सविनय अवज्ञा के सिद्धांतों की भावना भी तो यही है।
अहिंसा से स्थायी और नैतिक विजय
हो सकता है कि कुछ लोगों को अहिंसा का विचार आज के समय में प्रासंगिक न लगे लेकिन अहिंसा का अर्थ कमजोर होना नहीं है। इसका अर्थ है अपने प्रतिद्वंद्वी को नैतिक रूप से अस्त्रहीन कर देना। उसे अपने बल.प्रयोग की नैतिकता पर लज्जा महसूस करने पर विवश कर देना। इस तरह की विजय अधिक स्थायी और सार्थक है क्योंकि वह न सिर्फ दमन को समाप्त करती है बल्कि दमनकारी व्यक्ति को भी बदल देती है। भारत में गांधीजी के नेतृत्व में स्वाधीनता आंदोलन की सफलता के साथ.साथ अमेरिका में नागरिक अधिकार आंदोलन, दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद विरोधी आंदोलन, पोलैंड में लेक वालेसा के नेतृत्व में हुए लोकतंत्र समर्थक आंदोलन और चेकोस्लोवाकिया में चार्टर 77 के आंदोलन की सफलता अहिंसक प्रतिरोध की शक्ति को प्रमाणित कर चुकी हैं।
गांधीजी के अहिंसा और सत्य के सिद्धांतों ने उनके निधन के बाद भी विश्व के कोने.कोने में लोगों को अन्याय से मुक्ति दिलाई है। लोगों का जीवन बदल देने वाले ऐसे महापुरुष के सामने विश्व के सबसे बड़े पुरस्कार भी छोटे पड़ जाते हैं। यह बात नोबेल पुरस्कार देने वाली नार्वे की नोबेल समिति ने भी कही है जिसे आज तक यह पीड़ा साल रही है कि भगवान बुद्ध और ईसा मसीह के बाद विश्व में शांति के लिए सबसे बड़ा योगदान देने वाले महात्मा गांधी को नोबेल शांति पुरस्कार नहीं दिया गया। इस बारे में नोबेल समिति की स्थायी मानसिक पीड़ा को अभिव्यक्त करते हुए उसकी वेबसाइट पर एक विशेष पृष्ठ मौजूद है जो उन परिस्थितियों की चर्चा करता है जिनके कारण ऐसा नहीं हो सका। गांधीजी विश्व की ऐसी अकेली हस्ती हैं जिनके बारे में नोबेल समिति को इस तरह की स्थायी आत्मग्लानि है और वह इस बात को छिपाती भी नहीं। वह मानती है कि गांधीजी किसी भी नोबेल पुरस्कार से बहुत बड़े हैं।

तिब्बती धार्मिक नेता दलाई लामा ने पिछले दिनों कहा था कि महात्मा गांधी, जो कि उनके भी आदर्श हैं, एक सामान्य भारतीय दिखते हैं लेकिन वास्तव में उनके विचार बहुत आधुनिक हैं। गांधीजी के विचार आज भी विश्व भर के युवाओं को प्रभावित करते हैं यह बात अमेरिकी विश्वविद्यालयों में कराए गए एक सर्वेक्षण में फिर से सिद्ध हुई है। अमेरिकी छात्रों ने गांधीजी को दुनिया की किसी भी ऐतिहासिक या वर्तमान राजनैतिक हस्ती से ऊपर माना है, जिनसे वे प्रेरणा लेना चाहेंगे। बर्लिन में छात्रों की मांग पर एक विद्यालय का नाम बदलकर गांधीजी के नाम पर रखा गया है। अनेक अमेरिकी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में गांधीवाद पर पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं।
गांधीजी के विचारों की लोकिप्रयता, प्रासंगिकता और उनके प्रति सम्मान की भावना को गाहे.बगाहे अनेक बड़ी हस्तियां जाहिर करती रहती हैं। जैसे ब्रिटिश प्रधानमंत्री गोर्डन ब्राउन, जिन्होंने कहा कि वे गांधीजी जैसे अपने आदर्श की तुलना में कुछ भी नहीं हैं लेकिन उनकी प्रेरणा हमेशा उनके साथ है। पीपुल फॉर एथिकल ट्रीटमेंट ऑफ एनीमल्स के प्रमुख ब्रुस फ्रेडरिक ने शाकाहार के मामले में गांधीजी को अपना प्रेरणा स्रोत बताया है। एक फिलस्तीनी आत्मघाती हमलावर शिफा अल कुदसी का गांधीजी के विचारों को पढ़कर हृदय परिवर्तन हो गया है और वह मध्यपूर्व में शांति और अहिंसा को बढ़ावा देने में जुट गई है। विश्व भर में मिलने वाली ऐसी मिसालें अनगिनत हैं जिनके केंद्र में सिर्फ एक महापुरुष हैं- महात्मा गांधी। हमारा सौभाग्य है कि वे भारत में जन्मे। गर्व की बात है कि हमें उनका प्रत्यक्ष नेतृत्व और मार्गदर्शन मिला। किंतु उनके मानवतावादी विचारों की वैश्विक प्रासंगिकता और स्वीकायर्ता हमेशा बनी रहेगी।

कुछ अर्सा पहले मैंने कहीं पढ़ा था कि गुजरात में वैश्य समाज के एक सम्मेलन में गांधीजी को 'महान वैश्य नेता' के रूप में (मरणोपरांत) सम्मानित किया गया। गांधी को इस तरह की संकीर्ण सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। वे उन महापुरुषों में से हैं जो धर्म और भूगोल की सीमाओं से ऊपर उठकर वैश्विक अभिभावकों का दर्जा पा चुके हैं। उन पर वैश्य समाज और गुजरात तो क्या, भारत का भी एकाधिकार नहीं है। 'विश्व-मानव' गांधी तो पूरी मानवता के हैं!


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 Published by Surendra Kumar Tetarwal for http://www.examgk.com/
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Published By: Surendra Tetarwal -

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